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Thursday 8 November 2012

अजनबी बनके आया थे, तेरे शहर में............

वक़्त को मैंने, मजबूर होते देखा !

अपनों को अपनों से दूर होते देखा !!

जिनका नाता नही था, ख्वाबो से कभी !

उन्ही को ख्वाबो में, चूर होते देखा !!

आँख जिनसे, मिलाने से डरते थे कभी !

उन्ही को आँखों में डूबता देखा !!

और जो हँसते थे, कभी इश्क की बातो पर !

उन्ही पर , मोह्हबत का सुरूर देखा !!

अजनबी बनके आया थे, तेरे शहर में !

अपने आप, को मैंने मशहुर होते देखा !!

पी के ''तनहा''

Monday 5 November 2012

हसरते मगर, मेरी तनहा ही जली है,.....

तकदीर ने जिंदगी पल पल छली है !
उदासी ये शायद, विरासत में मिली है !!

मैं इंतज़ार करता रहा, एक सुबह का !
मगर रोज़ यहाँ, बस रात ही ढली है !!

यादों के काफिले, मिलने तो बहुत आये !
हसरते मगर, मेरी तनहा ही जली है !!


पी के ''तनहा''