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Tuesday 22 April 2014

मैं बहते पानी की तरह हो गया हूँ , साहेब ......

मोम की माफिक हूँ, पल भर में पिघल जाऊंगा !
जरा भी आग लगी दिल में, तो जल जाऊंगा !!
मैं बहते पानी की तरह हो गया हूँ , साहेब !
जिस भी आकार में ढ़ालोगे मुझको, ढल जाऊंगा !!

पी के ''तनहा''

Saturday 5 April 2014

कविता .....

कविता ! अपने अंतर की चेतना और अनुभूति की अभिव्यक्ति भर है कविता |

दिन में रात में, ख़ुशी में गम में, आशा में निराशा में, हार में जीत में, प्रीत में रीत में, जय में पराजय में, यश में अपयश में, वैभव में पराभव में, अपमान में सम्मान में, ख़ामोशी में जुनून में, बेचैनी में सुकून में, उम्मीद में ना उम्मीदी में, अपेक्षा में उपेक्षा में, होने में ना होने में, पाने में खो देने में, उदासी में उपहासी में |

ह्रदय में भावनाएँ किसी भी अवस्था में पनपती है | समय के किसी भी क्षण ह्रदय में उठता भावनाओं का ज्वार जब कागज पर आकर ठहर जाता है तो कविता बन जाती है |

पी के ''तनहा''

Friday 4 April 2014

इन आँखों ने, तेरा दीदार पाकर अच्छा नही किया

दफ़न कर चूका था जबकि, तेरे एहसासो को कबका !
इन आँखों ने, तेरा दीदार पाकर अच्छा नही किया !!

पी के ''तनहा''